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Harsh Madhukar

Journalist

मैं एक ऐसा काव्य रचूं

कल्पना में विचरण करता मन
सोचे हर पल कुछ उलझन
एक स्मृति है जिसको शब्द दूं
मैं एक ऐसा काव्य रचूं

वो सहजता वो संग
फूलो सा कोमल सादा जीवन
इसको ईश्वर की सौगात लिखूं
मैं एक एसा काव्य रचूं

हृदय बसे उन गुजरे पल में
सोचूं जिसको आठ पहर
इस धड़कन को राग लिखूं
मैं एक एसा काव्य रचूं

असर ये कैसा छाया है
श्रद्धा से झुक जाए सर
इसे भागीरथ का सांझ लिखूं
मैं एक एसा काव्य रचूं

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