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Harsh Madhukar

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तू दरिया पार कराने वाली कश्ती| Harsh Madhukar

मेरे मन का मौन है तू
मैं हलचल हूं अपने मन का
तू एक सुलझा सा लम्हा मेरा
मन का रूठा जज़्बात हूं मैं

मेरे बिगड़े हुए हालात में तू
अपने बिखरे घर-बार सा मैं
तू दरिया पार कराने वाली कश्ती
कोई रुका हुआ तूफान हूं मैं

मेरी शामों का तू ढलता सा सूरज
तेरी रातों के चांद का गुनहगार हूं मैं
तू एक उड़ता सा बादल नभ का
कोई बिछड़ी हुई नदी की धार हूं मैं ।

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