पिछले कई दिनों से क्या कर रहा हूँ, क्या बोल रहा हूँ इसका कोई एहसास दिमाग को नही है. चित दिनचर्या मे व्यस्त है लेकिन कुछ सवाल मन के दीवारों पे टकरा जाते है. कई चीजें जो पिछले दिनों घटित हुई है वो मन को हताश कर देती है. जितनी भी ऊर्जा शरीर में है सबको एकत्रित करना और जटिल भाव से कक्षा तक जाना फिर मन के कोलाहल को शांत करने के कई क्षणिक उपाय करना.
मेरी मानसिक अवस्था मेरे नियंत्रण में नही है और मै इस बात को स्वीकार नही कर पा रहा, लेकिन अभिनय भी कितनी देर किया जाये,अब शरीर भी थक रहा है, मैं जानता हूँ ये जिंदगी का सबसे खराब दौर है लेकिन आदमी कब तक परेशान रह सकता है. उन लोगों से क्या शिकायत जो मेरे अपने थे, जिनके साथ जीवन का एक हिस्सा बीत गया लेकिन पिछले दिनों कई घाव मिलें. सोचों एकसाथ समस्याओं के चौराहें पे खड़ा करके कोई खाश आपका साथ छोड़ जाए. वो जिसे अपना गढ़ा हो,वो आपको कैसे तोड़ सकता है?
कुछ खुद से भी नाराजगी है, वो कहते है ना
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
ये मै जानता हूँ मुझे ये संस्थान कितने संघर्ष और त्याग से मिला है.अपनी 3 साल के उस दौर का हर मिनट मुझे याद है ,कई रातों का जगना और भूखे पेट ,अपनी बदोलत जो कंपनी बनाई उसे छोड़ कर यहाँ आना , इससे ज्यादा तो कुछ किया भी नही जा सकता था.
पढाई कर रहा हूँ, अच्छे शिक्षक मिले है .अनिल सौमित्र जी के बारे मे जैसा मृत्युंजय भाई ने बताया था बिल्कुल सब वैसा ही है.
कक्षा मे कई मेधावी छात्र भी है जिनसे सिखने का अवसर मिलता रहता है, लेकिन मै अपना योगदान नही दे पा रहा इसका भी मलाल रहता है.
कई बुरे ख़यालों ने घेर रखा है लेकिन मम्मी- पिताजी की उम्मीदें बहुत है और अपनी जिम्मेदारी का आभाष इन चीजों से रोक लेता है.
हर क्षेत्र मे खुद को अकेला और अलग सा महसूस कर रहा हूँ लगता है वो दुनियाँ ज्यादा अच्छी थी जो मैंने बसाई थी. मै ये नही जानता मै आगे क्या करूँगा और ये परेशानियाँ कब तक रहेगी.
उलझेगी नहीं तो सुलझेगी कैसे?
बिखरेगी नहीं तो निखरेगी कैसे??
आऊँगा वापस, एकदिन