मैं अपने आप को एक भाग्यशाली व्यक्ति मानता हूं जो असाधारण रूप से भाग्यशाली जीवन जी रहा है। मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि मेरा जीवन विभिन्न भूमिकाओं में कई महिलाओं से भरा हुआ है, जिन्होंने मुझे वह व्यक्ति बनाने में योगदान दिया,जो मैं आज हूं ।वास्तविक रूप में कुछ किरदार ऐसे रहे है, जैसे एक बीज का विशाल फलदार वृक्ष का स्वरूप लेना होता है। किसी ने बीजारोपण किया तो किसी ने समर्पित भाव से उस बीज के पौधा बनने तक सहयात्री रही, वहीं किसी ने उस बीज से वृक्ष बने अस्तित्व को मुरझाने और सूखने से बचा लिया।
आज उन 3 महिलाओं के बारे में बात करने का मन है जो खंडहर से इस जीवन में शिल्पकार की भूमिका में रही है । पहली ,जाहिर है
मेरी मां
वह दृढ़ संकल्पित और मजबूत महिला जो कभी हार नहीं मानती। मां के लिए कुछ लिख देना जैसे मानो समुंदर को अंजुरी में समेटने का साहस करना। अपनी भावनाओं की अनगिनत तरंगों को अपने हृदय के पृष्ठों पर सही से लिखना कोई आसान कार्य नहीं है। मैं जानता हूं मैं कुछ भी लिख दूं, मैं अधूरा ही महसूस करने वाला हूं । क्योंकि जिस प्रकार सूर्य की लालिमा और गगन के अनंत विस्तार को शब्दों से भेदना मुश्किल है, कुछ उतना ही मुश्किल है मां की करुणा और उसके किरदार का बखान करना। मुझे नहीं पता मैंने जीवन में क्या खोया क्या पाया भगवान ने मुझे क्या सौंपा और मैंने क्या लुटा दिया मुझे तो सिर्फ यह पता है कि आज जो कुछ मेरा अस्तित्व है वह मां की वजह से है । मां से मैने एक साथ उगना और एक साथ ढलना सीखा है । गंगा की लहरों की तरह निर्बाध और निरंतर बहते रहना सीखा है। प्रकृति की तमाम सौम्य रचनाओं के कोतुहल में मुझे केवल अपने मां की तस्वीर दिखती है। मेरे मां का जीवन ही एक समर गाथा है जिसको जितनी बार पढ़ो और जीवन में अभ्यस्त करते जाओ उतना कम है । बचपन की कुछ धुंधली यादें हैं उसमें भी बस मां के ईद गिर्द घूमने वाली बातें ही ।
संघर्ष क्या होता है मैंने बचपन में उन्हीं को देखकर सीखा है। भौगोलिक रूप से मेरा गांव नदी किनारे बसा है, जहां बाढ़ एक बहुत आम समस्या है। पिताजी खेती बारी करते थे तो घर की माली हालत भी ठीक नहीं थी । उस दौर में भी किसी विशाल नदी पर बने पुल के कंक्रीट खंभों की तरह मां अडिग और अटूट खड़ी रही । उस समय शायद मेरी मां की मासिक तनख्वाह पंद्रह सौ के आसपास थी और यही घर चलाने का आधार भी था । एक बात और याद आती है उस दौर में गांव में डॉक्टर नहीं हुआ करते थे मेरी मां को थोड़ी बहुत चिकित्सीय जानकारी थी मुझे याद है कि गांव के लोग मेरी मां से सुई लेने आते थे और एक सुई देने का मेहनताना ₹5 हुआ करता था मेरी मां ने हम तीन भाई बहनों की खुशी के लिए , भविष्य को संवारने के लिए उस समय जो प्रयत्न किए वह किसी आम महिला के सामर्थ्य की बात नहीं है। आज भी जब वो सभी परिवारजनों से दूर गांव में सभी सुख सुविधाओं से पड़े वही काम कर रही है तो ये मेरे लिए सबसे प्रेरणास्पद है। मेरे अंदर परिश्रम और कार्य करने का साहस भी यहीं से आता है ।
आज जब मैं गांव के स्कूल से निकलकर देश के सर्वोत्तम मीडिया संस्थान भारतीय जनसंचार संस्थान पहुंचा हूं तो इसमें मेरी सफलता के साथ-साथ मेरी मां की भी सफलता है । घर गए हुए कुछ दिन हो गए हैं पिछली बार मां से बात हुई तो उन्होंने कहा था कि दो-चार दिन की छुट्टी मिली है तो घर जाओ । घर तो नही जा पाया लेकिन एक कविता लिखी थी ।
माँं , जब मैं लौट कर आऊंगा ,
बताओ क्या लाऊंगा?
जो मैंने दिन काटे हैं—एक बहादुर आदमी की तरह
अपने परदे-ढँके कमरे की खिड़की से
इन पहाड़ों, झाड़ियों पर आती
निर्विकार सुबह देखते हुए
हर दिन खुद से लड़ते हुए
गिरते संभलते फिर खड़े होते
इन अनजान समूहों में
हंसते ,रोते अभिनय करते।
मैं क्या बताऊंगा
की मैं आया हूं,
उन अंधी गुफाओं से गुजर कर
कभी भूखा , कभी प्यासा
यूंही बैठा रहा
क्या मैं लाऊंगा तुम्हारा प्रिय लोकगीत
“चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां”
क्या मैं तुमसे पूछूंगा की तुम ठीक हो मां
तुम्हे प्रतीक्षा थी ना, लो आ गया मैं मां
दूसरी मां
पिताजी की परवरिश भी बहुत मुफलिसी में हुई है लोग कहते है प्रतिभा बहुत थी लेकिन समय पर सहयोग नहीं मिल पाने के कारण कुछ खास नहीं कर पाए। मेरे पिताजी दो भाई और तीन बहनों में सबसे छोटे हैं इसके कारण बाकी भाई बहनों से उनको काफी स्नेह मिला है ।इसमें सबसे अधिक और खास संबंध रहा है सबसे छोटी बुआ से । मेरे जीवन में भी नीला शर्मा यानी कि मेरी छोटी बुआ जिनको हम भाई-बहन फुआ जी कहते हैं उनका एक बहुत खाश किरदार रहा है । दूसरी भाषा में कहें तो मेरे जीवन में वह मेरी दूसरी मां की तरह है । मेरे अंदर उपस्थित तमाम गुण सब इनकी परवरिश की बदौलत है, मेरे जिंदगी में मैंने कोई एसी सफलता हासिल नहीं की जिसमें इनका श्रेय ना रहा हो। हर परिस्थिति में भगवान में आस्था रखने वाले इनके भाव ने ही मेरे अंदर भी अध्यात्म की चेतना को जलाए रखा है । सीमित संसाधनों में संपूर्ण जीवन जीने की कला मैंने इन्हीं से सीखी है । बचपन में इन्होंने जिस तन्यमयता से निस्वार्थ संस्कार बोए थे अगर कल को वह वृक्ष बन भी जाए तो मैं संपूर्ण योगदान इनको समर्पित करना चाहूंगा ।
मुझे पता नहीं है की मैं इस जन्म या अगले जन्म में भी बदले में कुछ दे पाऊंगा या नहीं लेकिन इतनी संतुष्टि जरूर होती है कि जब कोई मेरी मेधा की तारीफ करता है तो मुझे लगता है कि मेरी बुआ की तारीफ हो रही है क्योंकि आज जो कुछ संभव है, इनके बदौलत ही है। आज अगर थोड़ा बहुत भी पढ़ लिख पाया तो उसके पीछे मेरी बुआ ही रही । जीवन के हर दौर में मैंने उनको एक जैसा देखा है, विषम शारीरिक परिस्थितियों में भी हमेशा स्वयं का नुकसान करते हुए दूसरों की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर देने वाला इनका भाव कलयुग में ईश्वर के मौजूद होने का सूचना बार-बार देता है । उम्मीद करता हूं आपने जो संस्कार एवं परवरिश मुझे दी है उस पर अपने व्यक्तित्व की एक इमारत खड़ी करूं, जिस पर आपको गर्व हो।
एक बहन, एक मित्र : अपूर्वा मिश्रा
अभी हाल के जीवन में किसी व्यक्ति ने अगर सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो है अपूर्वा मिश्रा।
भारतीय जन संचार संस्थान में आने के पहले से परिचित अपूर्वा, अपने नाम के शाब्दिक अर्थ पर बिल्कुल सटीक बैठती है । अपूर्वा यानी की अभूतपूर्व, जैसा पहले कभी नही हुआ हो।
दिल्ली की लड़की कैसी होती है ? दिल्ली जैसे शहर की जहां चकाचौंध है, गांव की मिट्टी जहां धूल बन गई है। जहां माहौल ने लोगों को पश्चिमी सभ्यता का बनावटी खामोश नक्शा बना दिया है। आप सोच भी कैसे सकते हो कि कोई उसमें भी कोई अपने अंजुरी में तमाम संचित संस्कृतियों को सहेज कर आगे बढ़ रहा होगा। आप सोच भी नहीं सकते कि किसी व्यक्ति से जिसकी तमाम जिंदगी शहर के बड़े इमारतों एवं कृत्रिम किरदारों के बीच गुजरी हो वह अपने अस्तित्व की खुशबू संजोए बैठा होगा। किसी को देखकर जो भाव और उसकी छाया प्रतिमा आपके मन में बनती है और कोई उसके विपरीत निकल जाए तो आप अपने मन से एक ग्लानि के भाव से भर जाते हैं आपको आश्चर्य के साथ खुद को गलत साबित हो जाने का भी आभास होता है। मेरे मन को पहली बार किसी किरदार ने इस प्रकार से चुनौती दी । वैसे तो मैं पहली झलक में ही लोगों के पहचान का विशेषज्ञ रहा लेकिन मैं यहां पूर्णता पराजित हुआ इस पराजय ने मुझे एक ऐसे व्यक्ति को जीवन में आदर्श के रूप में शामिल करने का अवसर दिया इसके जैसा मैंने दूजा किसी और को अपने जीवन काल में नहीं देखा है । भले अपूर्वा इलाहाबाद से हैं लेकिन उनकी परवरिश नोएडा शहर में ही हुई है। लेकिन फिर भी वह जो गांव की खुशबू और अपनेपन का बोध का एहसास संचित है मैं इसका पूरा श्रेय मैं उससे ज्यादा उनकी मां श्रीमती नीलम मिश्रा और पिताजी प्रदीप कुमार मिश्रा को देना चाहता हूं । आईआईएमसी में आने का जो 2-3 वर्षो का सपना था वो यहां पहुंचते ही पूरा हुआ लेकिन तमाम समस्याएं भी इसके साथ ही आई । अपूर्वा ने उस दौर में मेरी मदद की जब मुझे यहां खुद को समायोजित करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था मैं भावनात्मक और शारीरिक रूप से टूट का बिल्कुल एकाकी था। शायद उस समय का ही एहसान है जिसके कारण मेरे मन की दीवारों पर उसके लिए एक विशेष प्रकार का इज्जत का भाव है । जब लोगों की भीड़ में दो लोग अच्छे मित्र होते हैं तब लोगों के आंखों में यह खटकता है, ठीक वैसा ही हुआ शुरुआती दौर में कई साथ के ही लोगों ने कई प्रश्न चिन्ह खड़े किए । मैं इस बात के लिए भाग्यशाली महसूस करता हूं कि मुझे ऐसे व्यक्तित्व के साथ मित्रता का भाव रखने का सौभाग्य मिला जो अकेले खड़ी रही और हमेशा सबसे लड़ती रही । आज यह मित्रता हमेशा के लिए अमर हो गई है। उसके पीछे भी मैं अपूर्व मिश्रा को ही इसका श्रेय देता हूं ।
अपूर्वा की परवरिश ही धार्मिक माहौल में हुई है ,जैसा कि उसकी बातों और उसके शरीर से निकलने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा किरणों से प्रतीत होता है कि इनका ह्रदय बिल्कुल उसके ही राधा रानी की तरह स्वेत और कन्हैया के मुरली की तरह मधुर है। अपने मन से दीवारों से प्रश्न करूं और कुछ लिखने की कोशिश करूं तो बस इतना कह सकता हूं कि मां के मातृत्व और बहन की अस्तित्व की बीच में जो महीन रेखा बच जाती है वही अपूर्व मिश्रा का किरदार बैठ जाता हैं। मेरी बहनों जैसी प्रिय अपूर्व मिश्रा के लिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मेरा आईएमसी में आने का पहला हासिल यहीं है। जब मित्र में आपको अपनी मां बहन और किसी ईश्वर की छवि का एहसास होने लगे तो श्रीमदभगवद्गीता के अनुसार यह सबसे अच्छा अनुभव है।
मेरे जैसे तुक्ष व्यक्ति के खंडहर जैसे जीवन में सुसंस्कारी, सहज ,मर्यादित अपूर्वा मिश्रा जैसे पारिजात को कुछ ही समय के लिए देने के लिए मेरी दिली तमन्ना है कि मैं अपूर्व की मां – पिताजी के चरण स्पर्श करके उन्हे धन्यवाद कहूं । अपूर्वा के किए गए एहसानों के उधार का बोझ मेरे कंधो पर है। आशा करता हूं की मैं अपने आप को इतना सामर्थ्यवान बना सकूं कि कभी इनके जीवन के किसी क्षण में उपयोगी साबित हो सकूं।
इन सब महिलाओं के बारे में लिखते हुए, मैं और भी स्त्री किरदारों को सूची बना रहा हूं जिन्होंने मेरे जीवन पर प्रभाव डाला है, एसी और भी अन्य कई किरदार है जिनके बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है । मन थोड़ा भावुक है और निजी शब्दकोश में शब्दों की कमी महसूस हो रही हैं ।
निर्मला पुतुल की एक कविता याद आ रही है .
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वंय को स्थापित और निर्वासित
करती है एक स्त्री ।
सपनों में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तो के कुरुक्षेत्र में
अपने…आपसे लड़ते ।
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गाँठे खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास
एक स्त्री किसी किरदार में हो
एक बहन ,मां या कोई मित्र की भूमिका में
पुरुष होने का पहला धर्म है की तमाम विसंगतियों एवं मलीनता से पड़े, गंगा से निर्मल स्वेत हृदय से स्वीकार करने, उसे उसके हिस्से का सम्मान एवं भरोसे पर कायम रहना है।